जब भी दीपावली का त्यौहार करीब आता है तो पता नहीं क्यों एक तरह का Depression मुझे घेर लेता है .शायद इसलिए कि मूल रूप में यह व्यापारिओं का त्यौहार हो गया है .भगवान राम ने क्या इस देश में व्यापारिओं के लिए जनम लिया था .नहीं तो ?फिर यह क्या हुआ ?यह सब हमारी एस्टाब्लिश्मेंट का खेल है .दीपावली Corruption को एक तरह का धार्मिक आवरण पहनाती है और वक़्त की ज़रुरत है कि अन्ना हजारे इस तरफ भी ध्यान दें और लोगों को आगाह करें कि वे दीपावली पर किसी तरह का गलत लेन देन न करें .
Friday, 21 October 2011
Tuesday, 18 October 2011
Kya karen ?
मैं उत्तराखंड से ले कर तमिलनाडु और Orrissa से ले कर गुजरात तक देश के हर कोने में रहा हूँ और हर जगह एक बात बिलकुल एक समान है कि ईश्वर और सरकार यह दो संस्थाएँ ऐसी हैं जो बिना किसी भय के आम लोगों को लूटने के कारोबार में लगी हैं .इनके ऊपर किसी का नियंत्रण नहीं है .मनुष्यता के सबसे बड़े दुश्मन उसके अपने ही बनाये हुए हैं .कितना अजीब है और त्रासद भी .........
Sunday, 16 October 2011
दरअसल जीवन के इस मोड़ पर आकर लगता है कि अपने आप को एक तरह क़ीनिराशा से बचा कर रखने के लिए खुद से बाहरनिकलना कितना ज़रूरी होता है .सरकारी नौकरी में लगभग ३५ साल रहने के बाद आदमी क़ी हालत Germany के खेतों में काम करने वाले उस घोड़े क़ी तरह हो जाती है जिसके गले में बंधी रस्सी को उसका मालिक खोल देता है पर घोड़े को यकीन नहीं होता और वोह अपनी जगह पर खड़ा रहता है यह सोच कर किवह अभी भी बंधा हुआ है .वह घंटों निराश खड़ा रहता है पर एक कदम आगे नहीं चलता .क्या यह एक तरह की त्रासदी नहीं ?
Saturday, 15 October 2011
ऐसा लगता है कि हमारे मध्य वर्ग ने अपनी एक अलग दुनिया बना ली है उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि देश में कितनी गरीबी है .Health और education की Fields में अलग अलग सरकारों
ने क्या किया है .किस तरह एक देश
को तीन टुकड़ों में बांटदिया गया है .तीन भी क्या कई
टुकड़े .बहुत अमीर,अमीर ,उच्च मध्य वर्ग ,निम्न मध्य वर्ग ,गरीब और सबसे गरीब .यह एक अलग तरह का Communilism है जिस से लड़ा जाना चाहिए पहले.
जारी पता नहीं क्यों धीरे धीरे कुछ भी लिखने की इच्छाशक्ति कम होती जा रही है .एक समय था कि मैं इस बात क़ी कल्पना से भी भय खाता था कि लिखने क़ी सार्थकता के बारे में ही सोचना पड़ेगा .मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो लिखने को एक निजी कर्म समझते हों .मुझे लगता है कि लिखना एक सामाजिक कर्म है .जैसे प्रेमचंद लिखते थे या फिर यशपाल और भीष्म साहनी या हरिशंकर परसाई और मुक्तिबोध.लेकिन पिछले बीस पचीस वर्षों में हमारे देखते ही देखते समय बहुत तेज़ी के साथ बदला है .समय हमारे हाथों से जैसे छूटता ही चला जा रहा है .मैं खूसट बूड़ों क़ी तरह रोना नहीं चाहता पर मैं बहुत उदास हूँ .क्या मैं नए समय को समझ नहीं पा रहा हूँ ?क्या जो मैंने आज तक जीवन में समझा था वहसब गलत था .मुझे लिखना एकाएक निरर्थक सा क्यों लगने लगा है .दरअसल १९९१ के बाद जिस तरह नया अर्थतंत्र आया उसने हमारे सामाजिक रिश्तों को तहस नहस करके रख दिया .इसमें सब कुछ बुरा ही बुरा था या है ऐसा तो नहीं है लेकिन समाज के एक बहुत बड़े हिस्से को इस परिवर्तन में कोई जगह नहीं मिल सकी.उसे जानबूझकर आँखों से ओझल करने क़ी कोशिश क़ी गयी जो कि संभव नहीं है .आप ज़रा तमाम इलेक्ट्रोनिक मीडिया को देखें ,बड़े बड़े अख़बारों को देखें आपको सोने जवाहरात और कारों के विज्ञापनों से भरे नज़र आयेंगे लेकिन कोई एक ऐसी आवाज़ आप नहीं सुन सकेंगे जो उन लोगों की बात करती हो जिनके पास खाने को अन्न नहीं ,पहनने को कपड़ा नहीं ,रहने को छत्त नहीं पर फिर भी वे अपनी लोक धुनों और अपनी बोलिओं के बीच सांस ले रहे हैं .उनकी बात किस अख़बार में छपती है या फिर किस माध्यम में दिखाई जाती है .क्या वे sattalite आसमान में ही कहीं टंगे रह जाते हैं जिन में उन के चित्र होते हैं जिन के पास खाने को अन्न नहीं होता या फिर जो इस धरती पर कई तरह की प्रताड़नाओं के शिकार होते हैं .मुझे लगता है कि यह काम अगर कोई और नहीं कर सकता तो सबसे पहले यह जिम्मेवारी लेखक की बनती है क्योंकि उस के पास विचार है और शब्द हैं .यह मामला सिर्फ तथाकथित रूप से आत्मा और सुकून का नहीं है जिसकी तलाश में हमारा नव धनाड्य मध्य वर्ग रहता है और श्री श्री रविशंकर या उन के जैसे अन्य बाबा जी लोगों की शरण में पलायन करता है. ..........जारी
Sunday, 9 October 2011
ABOUT TEJINDER
Tejinder, 10th May 1951, Jalandhar, Punjab.
Primary education in Bastar and Raipur, Chattesgarh.
A post graduate in English literature. Have served as Director, Doordarshan Kendra, Nagpur, Sambalpur, Dehradun, Chennai, Ahmedabad,and Raipur as part of Indian Broadcasting services.
Formerly Deputy Director GENRAL OF DOORDARSHAN
.Presently Editorial Advisor to Deshbandhu Group of Publications.
.Presently Editorial Advisor to Deshbandhu Group of Publications.
Ten books published in Hindi, Known for the work of fiction ‘WOH MERA CHEHRA’ which was based on the impact of years of terrorism during eighties on the mindset of Sikh youth, born and grown up outside Punjab, after partition.
This novel won the State Academy Award of Government of Madhya Pradesh. The Punjabi translation of this book was serialized in the leading Punjabi daily Tribune Published from Chandigarh. The book won prestigious ‘WAGEESHWARI PURASKAR’. It also got very good reviews in the literary columns of ‘India Today’, ‘Sunday Observer’, ‘Nav-Bhart Times’ and other leading Hindi literary magazines.
Another novel ‘KALA PADRI’ i.e., The Black Priest was based on the mindset of the third generation of tribals in Central India whose ancestors had converted into Christianity. This novel too got acclaim in Sahara, Hindustan, Outlook and India Today as well in the leading national newspapers of Hindi.
The diary book ‘DIARY SAGA - SAGA’ written on the study and observation based on the social-economic scenario of ‘KALAHANDI’ AND ‘BOLONGIR’ districts of Western Orissa in the form of travelogue has also been well received in the literary circles.
“UNCLE RANDHAWA IN CHENNAI” is the first work in English.
Have been involved in the Production of number of Television documentaries in.
Contact e-mail: tejinder.gagan@gmail.com, Mobile:08878100098, 09893062464
LANDLINE 07716453095
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