Sunday 16 October 2011

दरअसल जीवन के इस मोड़ पर आकर लगता है कि अपने आप को एक तरह क़ीनिराशा से बचा कर रखने के लिए खुद से बाहरनिकलना कितना ज़रूरी होता है .सरकारी नौकरी में लगभग ३५ साल रहने के बाद आदमी क़ी हालत Germany के खेतों में काम करने वाले उस घोड़े क़ी तरह हो जाती है जिसके गले में बंधी रस्सी को उसका मालिक खोल देता है पर घोड़े को यकीन नहीं होता और वोह अपनी जगह पर खड़ा रहता है यह सोच कर किवह अभी भी बंधा हुआ है .वह घंटों निराश खड़ा रहता है पर एक कदम आगे नहीं चलता .क्या यह एक तरह की त्रासदी नहीं ? 

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